Yoga A Lifestyle

YOGA - A LIFESTYLE (योग - एक जीवनशैली)

योग एक जीवनशैली


जैसा की हम सब देख रहे हैं वर्ष 2020 की शुरुआत से ही कोरोना महामारी ने कई देशो को अपनी चपेट मे ले लिया जिससे कई लोगो की जान भी गयी | कई वैज्ञानिको ने इसके बारे मे कई जानकारियाँ भी दीं |

लेकिन इस बीमारी का इलाज़ भी हमारे अंदर ही मौजूद है। लोगों के शरीर मे प्रतिरोधक क्षमता होने से ही इस महामारी से बचा जा सकता है | पर ये प्रतिरोधक क्षमता शरीर मे बढ़ाए कैसे ? आधुनिक काल मे हमारी जीवनशैली इतनी ज्यादा अस्त-व्यस्त है। न समय पर सोना न समय पर जागना न खाना न पीना, काम की व्यस्तता । ज्यादा चिंता करना। मांसाहार, मदिरापान इत्यादि करना। तो फिर कैसे सुधारी जाए हमारी जीवन शैली । एक मात्र उपाय है योग । तो आइये जानते हैं योग क्या है ? योगा का इतिहास क्या है? योग से हम कैसे अपनी जीवन शैली को सुधार सकते हैं ? आगे हम अपने अगले ब्लॉग मे यह भी जानेंगे कि कौन से योगाभ्यास से कौन सी बीमारी या तकलीफ दूर हो सकती है।


 

योग का अर्थ है जोड़ | योग से हम अपने शरीर को मन से मन को आत्मा से और आत्मा को परमात्मा से जोड़ते हैं | योग स्वस्थ्य जीवन यापन की कला और विज्ञान है | आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड की हर चीज उसी परिमाण नभ की अभिव्‍यक्ति मात्र है। जो भी अस्तित्‍व की इस एकता को महसूस कर लेता है उसे योग में स्थित कहा जाता है और उसे योगी के रूप में पुकारा जाता है जिसने मुक्‍त अवस्‍था प्राप्‍त कर ली है जिसे मुक्ति, निर्वाण या मोक्ष कहा जाता है | योग का लक्ष्‍य आत्‍म-अनुभूति, सभी प्रकार के कष्‍टों से निजात पाना है जिससे मोक्ष की अवस्‍था या कैवल्‍य की अवस्‍था प्राप्‍त होती है | योग का अभिप्राय एक आंतरिक विज्ञान से भी है जिसमें कई तरह की विधियां शामिल होती हैं जिनके माध्‍यम से मानव इस एकता को साकार कर सकता है और अपनी नियति को अपने वश में कर सकता है |


 

योग का संक्षिप्‍त इतिहास एवं विकास:

जब से सभ्‍यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है | योग के विज्ञान की उत्‍पत्ति हजारों साल पहले हुई थी, पहले धर्मों या आस्‍था के जन्‍म लेने से काफी पहले हुई थी | योग विद्या में भगवान शिव को पहले योगी या आदि योगी तथा पहले गुरू या आदि गुरू के रूप में माना जाता है | कई हजार वर्ष पहले, हिमालय में कांति सरोवर झील के तटों पर आदि योगी ने अपने प्रबुद्ध ज्ञान को अपने प्रसिद्ध सप्‍तऋषि को प्रदान किया था | सत्‍पऋषियों ने योग के इस ताकतवर विज्ञान को एशिया, मध्‍य पूर्व, उत्‍तरी अफ्रीका एवं दक्षिण अमरीका सहित विश्‍व के भिन्‍न - भिन्‍न भागों में पहुंचाया | रोचक बात यह है कि आधुनिक विद्वानों ने पूरी दुनिया में प्राचीन संस्‍कृतियों के बीच पाए गए घनिष्‍ठ समानांतर को नोट किया है | तथापि, भारत में ही योग ने अपनी सबसे पूर्ण अभिव्‍यक्ति प्राप्‍त की | अगस्‍त नामक सप्‍तऋषि, जिन्‍होंने पूरे भारतीय उप महाद्वीप का दौरा किया, ने यौगिक तरीके से जीवन जीने के इर्द-गिर्द इस संस्‍कृति को गढ़ा |

पूर्व वैदिक काल (2700 ईसा पूर्व) में एवं इसके बाद पतंजलि काल तक योग की मौजूदगी के ऐतिहासिक साक्ष्‍य देखे गए | मुख्‍य स्रोत, जिनसे हम इस अवधि के दौरान योग की प्रथाओं तथा संबंधित साहित्‍य के बारे में सूचना प्राप्‍त करते हैं, वेदों (4), उपनिषदों (18), स्‍मृतियों, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, पाणिनी, महाकाव्‍यों (2) के उपदेशों, पुराणों (18) आदि में उपलब्‍ध हैं |

पतंजलि के योग सूत्र में न केवल योग के विभिन्‍न घटक हैं, अपितु मुख्‍य रूप से इसकी पहचान योग के आठ मार्गों से होती है | व्‍यास द्वारा योग सूत्र पर बहुत महत्‍वपूर्ण टीका भी लिखी गई | इसी अवधि के दौरान मन को महत्‍व दिया गया तथा योग साधना के माध्‍यम से स्पष्‍ट से बताया गया कि समभाव का अनुभव करने के लिए मन एवं शरीर दोनों को नियंत्रित किया जा सकता है |

योग का अर्थ हठ योग एवं आसनों तक ही सीमित नहीं है। तथापि, योग सूत्रों में केवल तीन सूत्रों में आसनों का वर्णन आता है। मौलिक रूप से हठ योग तैयारी प्रक्रिया है जिससे कि शरीर ऊर्जा के उच्‍च स्‍तर को बर्दाश्‍त कर सके। प्रक्रिया शरीर से शुरू होती है फिर श्‍वसन, मन और अंतरतम की बारी आती है। ''योग ब्रह्माण्‍ड से स्‍वयं का सामंजस्‍य स्‍थापित करने के बारे में है। यह सर्वोच्‍च स्‍तर की अनुभूति एवं सामंजस्‍य प्राप्‍त करने के लिए ब्रह्माण्‍ड से स्‍वयं की ज्‍यामिती को संरेखित करने की कला है | योग किसी खास धर्म, आस्‍था पद्धति या समुदाय के मुताबिक नहीं चलता है; इसे सदैव अंतरतम की सेहत के लिए कला के रूप में देखा गया है। जो कोई भी तल्‍लीनता के साथ योग करता है वह इसके लाभ प्राप्‍त कर सकता है, उसका धर्म, जाति या संस्‍कृति जो भी हो |

 

योग की परंपरागत शैलियां : योग के ये भिन्‍न - भिन्‍न दर्शन, परंपराएं, वंशावली तथा गुरू - शिष्‍य परंपराएं योग की ये भिन्‍न - भिन्‍न परंपरागत शैलियों के उद्भव का मार्ग प्रशस्‍त करती हैं, उदाहरण के लिए ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग, ध्‍यान योग, पतंजलि योग, कुंडलिनी योग, हठ योग, मंत्र योग, लय योग, राज योग, जैन योग, बुद्ध योग आदि। हर शैली के अपने स्‍वयं के सिद्धांत एवं पद्धतियां हैं जो योग के परम लक्ष्‍य एवं उद्देश्‍यों की ओर ले जाती हैं।

निष्‍कर्ष:

बड़े पैमाने पर की जाने वाली योग साधनाएं इस प्रकार हैं : यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्‍याहार, धारणा, ध्‍यान, समाधि / साम्‍यामा, बंध एवं मुद्राएं, षटकर्म, युक्‍त आहार, युक्‍त कर्म, मंत्र जप आदि।

§      यम अंकुश हैं तथा नियम आचार हैं। इनको योग साधना के लिए पहली आवश्यकता के रूप में माना जाता है।

§      आसन, शरीर एवं मन की स्थिरता लाने में सक्षम है 

§      प्राणायाम मन की चेतना को विकसित करने में मदद करता है तथा मन पर नियंत्रण रखने में भी मदद करता है।

§      प्रत्‍याहार ज्ञानेंद्रियों से अपनी चेतना को अलग करने का प्रतीक है, जो बाहरी वस्‍तुओं से जुड़े रहने में हमारी मदद करती हैं।

§      धारणा ध्‍यान (शरीर एवं मन के अंदर) के विस्‍तृत क्षेत्र का द्योतक है, जिसे अक्‍सर संकेंद्रण के रूप में समझा जाता है।

§      ध्‍यान शरीर एवं मन के अंदर अपने आप को केंद्रित करना है और समाधि - एकीकरण।

आजकल पूरी दुनिया में योग साधना से लाखों व्‍यक्तियों को लाभ हो रहा है, जिसे प्राचीन काल से लेकर आजतक योग के महान आचार्यों द्वारा परिरक्षित किया गया है। योग साधना का हर दिन विकास हो रहा है तथा यह अधिक जीवंत होती जा रही है।

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